sulemmaa
sulemmaa
28.02.2021 • 
Social Studies

सो उड़ने का यही आनंद है- भर पाया मैं तो। पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकरआकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा।केवल ढेर सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं ,कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं ,किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं।अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। प्र-1 यह गद्यांश कौन-से पाठ से लिया गया है ?

Solved
Show answers

Ask an AI advisor a question